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Sunday, January 19, 2020

Protest / Contest

It's been ages since I've written, even longer since I've written poetry, and - with one exception - decades since I've written poetry in Hindi. 

Some time in the late '90s, my father (who served in the Indian Navy) was on a non-family posting in Tamil Nadu. 10-year-old me wrote a poem about a cat ("billi") trying to visit Delhi ("Dilli") -- as near as I can remember, for no better reason than that those two words rhymed. At the time I found that hilarious (low key still do). 

What to do with it once written? It went into a letter to Baba. 

Baba being Baba, he wrote me a reply in the exact rhyme scheme I'd used. (All I remember today is the first line - "Parh kar aapki kavita pyari..." - point is he made sure to match my rhythm exactly, down to the number of syllables. Four-line verses, AA/BB, 9/8/9/8. Funny what sticks in memory, no?)

Recent protests against the CAA have inspired powerful poetry (Varun Grover, Aamir Aziz), as well as the rediscovery of such masters as Faiz, "Pash", "Indori", and Dushyant. Between reading and listening to those, and all the memories of Baba that flooded back this month - a year since he left this world - I found myself compelled to write again.


Like Baba writing back to me 20-some years ago: poetry should be answered in poetry. I don't have his skill, so I can't promise much by way of rhyme scheme or prosody; best I can do is blank verse. 

Bear with me (and tell me if you spot typos. It really has been a while). 

इजाजत चाहता हूँ |

--

पितृभूमि

(0)
|| वादे वादे जायते तत्वबोध ||

(1)
राहत साहब ने एक सवाल पूछा:
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है?
जानता हूँ, सवाल नहीं, चुनौती थी --
चुनौती नहीं, सच्चाई थी --
मन में, फिर भी,
एक जवाब अपने आप सा उभर आया : 
हाँ, है |

यह मेरे बाबा का हिंदुस्तान है |


(2)
बाबा बनारस के थे:
वहीँ पले-पढ़े |
उनके वालिद - मेरे दादा - 
जिन्हे हम 'पापाजी' कहते थे 
विश्वयुद्ध में फ़ौज में थे
युद्ध ख़तम हुआ, अँगरेज़ भी चले गए,
पापाजी वापिस बनारस आये,
वहीँ घर बसाया |
मेरी दादी टीचर थी
और शास्त्रीय संगीतज्ञ भी
उनके घर में सुबह-शाम 
रियाज़ हो या रेडियो
गाना गूंजता रहा |
गाने सुनते-गाते 
भारत आज़ाद हुआ
पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया
उसी साल, उसी घर, उसी धुन में 
बनारस में बाबा का जन्म हुआ |

यही तो मेरे बाबा का हिंदुस्तान है |

(3)
वर्दी पहनी थी बाबा ने
तीस साल नौसेना के अफसर रहे
अपने देश की सेवा की(चाचा, पापाजी जैसे, फ़ौज में शामिल हुए)
देश के कोने-कोने तक भेजा गया दोनों को
बाबा कब वेलिंगटन, कब कोची,
चाचा कब लैंसडौन, कब श्रीनगर,
मेरी दीदी का जन्म बम्बई में
मेरा जन्म विशाखापट्नम में
बाबा नाव पर, ड्यूटी पर |
रूस तक भी गए
कुछ-कुछ रशियन बोलना सीखे
Vladivostok से नौकायान करते
यूरोप के रास्ते वापिस आये --
जिस ज़माने मे
किसी को दुनिया की क्या कदर थी
तब से बाबा दुनिया के
कोई नक़्शे, कोई झलक देख आये |

बाबा को डॉ. अब्दुल कलाम की आत्मकथा
बेहद पसंद थी | उस किताब को
दस-बीस बार पढ़ा होगा उन्होंने
कलाम साहिब जहां पले-पढ़े
उस रामेस्वरम शहर में भी
बाबा का ढाई साल पोस्टिंग रहा |
कुछ-कुछ तमिल भी पढ़ना सीखा,
मुझे भी पढ़ाया -- यह रही बीस साल पुरानी बात,
आज दस तक की गिनती भी मुश्किल से  याद होगी
लेकिन
कन्याकुमारी के किनारे पर
उस महा-संगम के स्थल पर
विवेकानंद स्मारक में बैठ कर
ध्यान लगाए बाबा की शांत, संतुष्ट छवि
अभी भी याद्दाश में उस पल का निशान है |

यही तो मेरे बाबा का हिंदुस्तान है |

(4)
जो लोग वर्दी पहन कर
देश की रक्षा करने की कसम लेते हैं
उन पर फिर अलग नियम हावी होते हैं
फौजी अनुशासन चलता है
वरिष्ट अफसर के आर्डर का पालन करना
उनके लिए अनिवार्य बनता है -- और ऐसे आर्डर का उल्टा जवाब देना
भले अकल्पनीय न हो
काफी मुश्किल बनता है |

मैंने कईं लोग देखे हैं
जो इसी प्रशासन-प्रक्रिया को
इसी विचारधारा को
घर तक भी ले आते हैं
घर में फौजी चाहे वो अकेले हो
हरेक घरवाले से वैसे ही
आज्ञापालन की अपेक्षा रखते हैं |

खुशकिस्मती हमारी
बाबा और आई के ऐसे विचार नहीं रहे
दीदी और मेरे बचपन में --
चाहे बाबा ने, या आई ने,
या वो दोनों जब ऑफिस में थे
और हम घर आते तब
हमारी देखभाल जिन्होंने की
उन नाना-नानी ने -- सभी ने हम दोनों से सिर्फ इतना ही कहा :
पढ़ो, बेटा | पढ़ते रहो,
पढ़ कर अपना विवेक जगाओ
अपने मन की, अपने अन्तःकरण की सुनो --
अपना ईमान बनाये रखना
ईमानदारी से बढ़कर कोई धरम नहीं
तुम अपना दिमाग लगाए जाओ |

मेरे कहने का मतलब यह नहीं
कि हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ
मैं तो हूँ ही आलसी
क्या पता कितने बार डांट खाई
रोते-चिल्लाते कई बार सो गया लेकिन कभी भी इस बात पर नहीं कि
बाबा ने दिए आदेश को अनसुना किया

यही तो समझने की बात हे:
आर्डर सुनने पर हर कोई मजबूर नहीं
और आर्डर देने लायक भी
हर कोई नहीं कहलाता है
हैं आज हकदार कोई, तो क्या हुआ :
रहत साहब ने ही बताया था
किरायेदार हैं, कौन सा जाती मकान है?

यही तो मेरे बाबा का हिंदुस्तान है |

(5)
बाबा ऐसे संगीतमय घर में पले
उन्हें गाने बहुत पसंद थे
पुराने फिल्मों के गाने गाते गुनगुनाते रहते
मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, आशा भोसले,
एस.डी. बर्मन, किशोर कुमार के शौक़ीन --
हम जब छोटे थे, बाबा हमारे लिए
यह गाना लोरी के वास्ते गाते थे :
"आ चल के तुझे, मैं लेके चलूँ,
इक ऐसे गगन के तले..."

इन गानों के ज़िक्र से याद आता है
एक और दोस्त हैं
वो भी फ़ौज में रहे हैं
आज पत्रकार कहलाते हैं
उन्होनें अपने दो दोस्तों के साथ
ऐसी किताब लिखी है
जिसमे भारत देश के ७० सालों का इतिहास
७० गानों में बयां किया है
(मन करता है, काश बाबा के लिए वो किताब लायी होती --
उन्हें खूब पसंद आती)
खैर, पुराने गानों की बात क्यों ?
यह समझाने के लिए
एक और कहानी बतानी होगी :

मैं वकालत सीखने गया
उन दिनों से एक सहेली है
जिन्होंने देश और देशवासियों की सेवा करने के इरादे पर
इस तरह अमल किया
जब उन्हें अपनी सनद प्राप्त हुई
तो वो सीधे छत्तीसगढ़ के बस्तर जिल्ले में
जगदलपुर चली गयी |
वहां, अपने अधिकारों के लिए
लढने वाले आदिवासियों की
वकील के रूप में मदद की |

इस काम में उनकी गुरू तथा सहकारी
सुधा भरद्वाज जी रही --
जिनका नाम आपने सुना होगा
सितम्बर २०१८ से लेकर
आज तक सुधा जी को
खोखले और संदिग्ध आरोपों के बहाने
जेल में नज़रबंद कर रखा है |

जब सुधा जी को कैद रखे हुए
करीबन एक साल होने आया
मेरे सहेली के वालिद --
पापाजी जैसे, चाचा जैसे, मेरे पत्रकार दोस्त जैसे,
वो भी फ़ौज में रहे हैं,
कर्नल साहब कहलाते हैं --
कर्नल साहब ने अखबार में एक लेख लिखा |
उसमे कहा
कि सुधा जी पर लगाए गए
इल्ज़ामों के बारे में
मैं कुछ नहीं कह सकता
सच्चाई का फैसला तो न्यायलय में होगा ;
लेकिन छत्तीसगढ़ के निवासियों की सेवा
सुधा जी किस हालात में करती हैं
इसका सबूत अपने आँखों से देखा है
और चाहे एक पिता होने के नाते,
या एक नागरिक होने के नाते,
मैं तो उनका सलाम करता हूँ --
बल्कि, एक अफसर होने के नाते
उन्हें सलूट करना मेरे लिए गर्व की बात है |

बात ऐसी है :
जिन्होंने वर्दी पहनी है
देश की सेवा को धर्म मान कर
ज़िन्दगी-भर धर्म और देशभक्ति की राह चली है
धर्म और देशभक्ति के बीच का अंतर
उनकी अंतरात्मा समझती है |
तो सुधा जी को,
उनके सहकारियों,
और मेरी सहेली को,
कर्नल साहब को,
स्वतन्त्र भारत के इतिहास का संगीतमय वर्णन करने वाले
उन लेखकों को,
अपने अन्तःकरण की सुनने वाले
हरेक नागरिक को,
हुकूमत से जवाब मांगने वाले
हरेक उस छात्र को,
सभी को मेरा सलाम |

किसी को यह ग़लतफहमी न हो
कि देश या देशवासियों की सेवा करने का
सिर्फ एक ही कोई रास्ता है |
गाने सीखना, सिखाना,
गानों के बारे में
या इतिहास के बारे में
किताबें लिखना,
किताबों के बारे में लेख लिखना
और वकीलों के बारे में भी,
यह सभी इज्तेहाद है ;
यही तो वोह संस्कृति है
जिसके बल पर देश महान है |

यही तो मेरे बाबा का हिंदुस्तान है |

(6)
बाबा को दोहे भी बहुत पसंद थे आँखें मिचमिचाते हुए मौके-मौके पर एक-एक दोहा सुनाते थे |
बचपन में मैंने इसे बनारस की खासियत समझ रखी थी, कि वहां का एक-एक व्यक्ति कबीर-रहीम मौके-मौके पर दोहराता है |
आज-कल ही पता चला है कि कुछ लोगों ने शायद दोहा सीखा भी हो
समझा नहीं है | वो सिर्फ रट्टा था
या फिर हो सकता है सिर्फ नाम से बनारस-वाले पेश आ रहे हैं | बाबा का अगर सबसे प्रिय कोई दोहा रहा,
तो शायद यह था : || कंकड़-पत्थर जोड़ के मस्जिद लियो बनाये तां चढ़ मुल्ला बांग दे - क्या बहरा बना खुदा है? ||

खुदा की हम क्या जाने, क्या लिखें? यह एक गोरख धंदा है इतना समझते हैं, कुछ लोग भी ऐसे हैं जो या तो सचमुच बेहरे बन चुके हैं या फिर सुनकर अनसुना करना सीखे हैं | (यह भी गोरख धंदा है कानों से जो आवाज़ सुनाई दे आँखों से जो सच्चाई दिखाई दे ऐसे सच को झूठ कहने वाली ज़ुबान की हरेक इस हरकत से...) खैर आज बाबा का बनारस कहाँ वो बचपन का बनारस रहा कबीर दास की कौनसी कीमत रही एक शहर की बात छोड़ दीजिये,
यू. पी. राज्य की ही क्या हालत रही और किसी ज़माने में जुड़ा हुआ मस्जिद भी कहाँ बना रहा? इंसान और इमारत मिट जाते हैं नियम, कायदे, इंसानियत भी ;
कविताएं और तर्क इतने आसानी से भुलाकर भी भूले नहीं जाते | तो दो और पंक्तियाँ भी याद हैं जो सुनने को तैयार हैं हमने जैसे बाबा से सीख ली हो सकता है वो भी कुछ सीख ले |
बात ऐसी है कि || तुमसे पहले जो शख्स यहाँ तख़्तनशीन था उसे भी अपने खुदा होने पर उतना ही यकीन था || शहंशाहों की कोई कमी नहीं रही इस देश के इतिहास में लेकिन वो ज़माना खल्लास है आज सर्वोच्च संविधान है | यही तो मेरे बाबा का हिंदुस्तान है |

(7)
बाबा आज इस धरती पर नहीं रहे ये भी करीबन एक साल की बात रही पिछले जनुअरी में, जिस समुन्दर किनारे हम पले, जो उनकी कर्मभूमि रही, उस अरबी महासागर को हमने
उनकी अस्थि समर्पित की |
यहाँ की या वहां की
कईं की भी मिटटी का
सवाल ही नहीं उठता सागर कौनसी सीमा जानता है? मान लीजिये कि बाबा
पूरी दुनिया की बालू में शामिल हुए | मैं तो रहा नास्तिक आत्मा क्या है जानता नहीं "स्वर्ग" है, ये मानता नहीं लहरों के बोल को ही प्रार्थना समझने लगा हूँ : जब समुन्दर किनारे चलता हूँ बाबा से अक्सर बातें करता हूँ| इस बार, नए साल को मनाने जब समुन्दर किनारे चलने गए तो उनके आवाज़ में सुनी
एक और प्रार्थना याद आयी :
"Where the mind is without fear, and the head is held high...
[जहाँ मन निर्भय हो
सर ऊँचा हो
ज्ञान आज़ाद हो
जहाँ एक-एक लफ्ज़ सच्चाई के
गहराइयों से उभर आये
जहाँ चेतना की निर्मल धरा
अंध-विश्वास के रेगिस्तान में गुम न हो
दुनिया को सिमटी-सी दीवारों से
खंडित न किया गया हो
जहाँ प्रयास अथक हो,
सिद्धि की ओर बढ़ता रहे,
आज़ादी के ऐसे स्वर्ग में
मेरा देश जागृत हो! ]

Into that heaven of freedom, let our world awake!

(8)
उम्मीद की बात यही है कि जागरण के निशान आज चारों ओर हैं आँखें ही नहीं, मेरे देशबंधु आज खुले दिल से
दुनिया देख रहे हैं और सपनें भी |
जिन सपनों को साकार करने के लिए इतने हज़ारों-लाखो लोग हाज़िर हैं उनको मना करने की औकात तो
खुदा की भी नहीं है सामने तो बस एक हुकूमत है -- यह क्या उखाड़ लेगी? कोशिश करते खुद ही उखड़ जाएगी | किसी को थोड़ी सी भी ग़लतफहमी न हो कि देश की सेवा करने का, देश प्रेम ज़ाहिर करने का, कोई एक ही रास्ता है:
आग के भी कईं रूप होते हैं
कलाम साहब ने लिखा था कि प्रज्वल मन के उड़ान से ही
यह देश विकसित होगा Prometheus की कहानी याद कीजिए मन की आग बुझाने के काबिल कोई भी नहीं है
एक एक चिंगारी से 
फैलती है, फिर से जल उठती है |

Love is not a spark
Love can illuminate galaxies.

मेरा प्रयास है उस दृश्य को साकार करने का
जिसका वर्णन बाबा ने
हमे इतनी रातों बताया सपनों में दिखाया:
"जहाँ ग़म भी न हो, आंसूं भी न हो, बस प्यार ही प्यार पले |"

प्यार से ही पला हुआ
इस देश का ज़मीन-आसमान है --

यही तो मेरे बाबा का हिन्दुस्तान है |

यही तो हमारा हिन्दुस्तान है |


- Ameya Ashok Naik | 08-09 January, 2020

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